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भारत की प्रथम महिला गुप्तचर ” नीरा आर्य “

जिंदगी के सफर में,
विश्वास जिंदा रख।
जिंदगी को जीने की,
प्यास जिंदा रख।
पा जाएगा मंजिलें भी,
चाही जो तूने,
परवाज को छूने का,
आत्मविश्वास जिंदा रख….

विश्वास ,त्याग ,समर्पण और राष्ट्रप्रेम की प्रतिमूर्ति रही हैं नीरा आर्य जी। जिनका भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे नेताजी सुभाषचंद बोस की सबसे विश्वसनीय थी। लेकिन फिर भी इतिहास ने उन्हें उपेक्षित समझ कर दरकिनार कर दिया। आज मैं आपको उनके व्यक्तित्व से परिचित कराने का एक सार्थक प्रयास कर रहा हूँ।
ब्रिटिश भारत की पहली महिला गुप्तचर नीरा आर्य जी का जन्म उत्तरप्रदेश राज्य के खेकड़ा नामक गाँव में 5 मार्च , 19 02 को हुआ था। जो बागपत जिले में स्थित है। दुर्भाग्य से बचपन में ही उनके माँ बाप गुजर गए। नीरा आर्य अनाथ हो गई । उसकी माँ की दी हुई एक चवन्नी उसके आँचल के पल्लू में बंधी रह गई थी। उसने सोचा इससे कुछ फूल खरीद कर मंदिरों में बेचे जाए तो कुछ खर्च चल सकता है। एक दिन वह आर्य मंदिर के बाहर अपनी छोटी दुकान लगा कर बैठ गई। तभी वहाँ भिवानी के पास के छ्ज्जू मल जी सेठ आये । उन्होंने कहा बेटी यह आर्य मंदिर है । यहाँ फूल नहीं चढाए जाते क्योंकि यहाँ कोई मूर्ति नहीं होती। तो वह पछता पछता कर रोने लगी कि आज तो भूखा ही सोना पड़ेगा। छ्ज्जू मल जी सेठ ने पूँछा- बेटी तुम्हारे माता पिता कौन हैं ? नीरा ने उत्तर दिया मैं अनाथ हूँ। तब सेठ जी ने गाँव वालों की सहमति से उसे अपनी धर्म पुत्री बना लिया। उसकी पढ़ाई- लिखाई कराई। उनका कोलकाता में जूट का अच्छा कारोबार था। वे उसे भी वहीं ले गए। वही उनकी भगवानपुर नामक गाँव में शिक्षा हुई। उनके प्रारंभिक शिक्षक बनी घोष थे। उन्होंने नीरा आर्य को संस्कृत भाषा का ज्ञान कराया। वे हिंदी ,बांग्ला उर्दू जैसी कई भाषाओं की अच्छी जानकार थी । नीरा आर्य सुभाषचंद बोस को अपना धर्म भाई मानती थी। भाई मानने के पीछे एक दिलचस्प घटना है। एक दिन वह समुद्र किनारे पहुँच गई। समुद्र को गाँव के जैसा तालाब समझ कर उसमें डुबकी लगा दी। वहीं एक लड़का बैठा था। उसने उसे डूबते देखा। वह उसे बचाने के लिए समुद्र में कूद गया । उसे बाहर निकाला।उपचार किया। होस आने पर नीरा ने कहा भाई तुम कौन हो ? तब उस लड़के ने कहा- यदि तुम मुझे अपना भाई मानती हो तो मेरी कलाई पर पहले राखी बांध दो। तब नीरा ने अपने कुछ सिर के बाल उखाड़ कर उसकी कलाई पर बाँध दिए।तब उसने कहा मैं सुभाष चंद हूँ। तब से वे उसे अपनी बहिन मानने लगे। वह भी उनके घर आने जाने लगी। वह भगतसिंह , चतुरसेन व दुर्गा भाभी को भी बहुत सम्मान देती थी। आगे चलकर नीरा आर्य जी आजाद हिंद फौज में झाँसी की रानी बटालियन में सैनिक के रूप में भर्ती हुई। उनका एक भाई बसंत भी आजाद हिंद फौज का सैनिक था। आजादी के बाद वह भी सन्न्यासी हो गया। नेताजी ने उन्हें अपना गुप्तचर बनाया। वे भारत की पहली महिला गुप्तचर थी । उन्होंने अपनी सहेली राजमणि के साथ अंग्रेजी केम्पों में काम करके जासूसी का कार्य किया था। उनका विवाह एक सीआइडी अफसर श्रीकांत जयरजन दास के साथ हुआ। जो उस समय पैसा लेकर अंग्रेज सरकार के लिए गुप्तचर का काम करता था। उसे सुभाष चंद बोस की जासूसी कर मारने का काम मिला था। एक दिन बात ही बातों में उन्होंने अपने पति के सारे मंसूबे जान लिए। पति ने कहा कि तुम सुभाष का साथ छोड़ दो। मैंने उन्हें मारने की सुपारी ली है। इसके लिए मुझे अंग्रेजों से धन मिला है। इससे पति पत्नी में अनबन हो गई। इसी समय सुभाष चंद बोस भी सिंगापुर चले गए। वे भी सरदार सिंह जी के साथ सिंगापुर पहुँच गई। एक दिन कैम्प में नेताजी रात्रि में आराम कर रहे थे। नीरा अपनी सहेली के साथ टैंट के बाहर पहरा दे रही थी। अचानक कुछ हलचल सुनाई दी। देखा तो उसका पति वहाँ खड़ा था। उसने कहा तुम यहाँ क्यों आए हो ? उन्होंने कहा- मैं नेताजी को मारने आया हूँ। यह कहकर उसने गोली के कई फायर कर दिए। नीरा ने सोचा कि गोली सुभाष चंद को लग गई है । तभी उन्होंने अपने पति के पेट में संगीन घुसेड़ दिया। पति ने भी जवाबी फायर किया। जिसमें उनकी नाक को छूती हुई कान से गोली निकल गई। लेकिन सुभाष चंद बोस को बचाने के लिए उन्होंने अपने पति की हत्या कर दी। क्योंकि देशभक्त के लिए राष्ट्र -धर्म के सामने हर एक रिश्ता बौना लगता है। राष्ट्र- भक्त के लिए देश सर्वोपरि होता है। सुभाष चंद जी इस समय पूरे भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उस राष्ट्रपुरुष को बचाने के लिए अपने पति के प्राण ले लिए। सुभाष जी जब बाहर जीवित निकले तो वह आश्चर्य चकित रह गई। नेताजी ने बताया कि वह गोली उन्हें न लग कर उनके अंगरक्षक को लग गई। पति की हत्या करने के कारण नेताजी ने उन्हें नीरा नागिनी नाम दिया। तब से उन्हें नीरा नागिनी के नाम से भी जाना जाता है। पति की हत्या के अपराध में उन्हें पकड़ कर काला पानी की सजा के लिए अंडमान निकोबार ले जाया गया। जहाँ उन्हें अमानवीय यातनाओं से गुजरना पड़ा। उन पर बर्बरता पूर्वक अत्याचार किए गए। बार -बार धमकी देकर पूछते कि बताओ नेताजी कहाँ हैं ? वह कहती रही विमान दुर्घटना में मर गए। पर वे मानने को तैयार नहीं थे। वे कहते यह तो सब संसार जानता है….। यह बताओं कि वे जीवित कहाँ हैं ? उन्होंने पता होते हुए भी सुभाष चंद का सच छिपाकर रखा। एक दिन लोहार उसके पैरों में बंधी बेड़ियों पर छेनी हथोड़े की चोट मार रहा थे। तभी कुछ माँस भी कट गया । उन्होंने कहा – तुम्हें दिखता नहीं है कि पैर कट रहा है। तो वह कड़ककर बोला पैर क्या ? जान भी जाएगी। जेलर पूँछ रहे थे । बताओं कहाँ हैं सुभाष चंद बोस ? हम तुम्हें जेल से रिहा कर देंगे । तो नीरा ने जवाब दिया सुभाष बाबू मेरे दिल में जिंदा हैं। जेलर बोला – सच बताओं नहीं तो हम वह दिल भी निकाल सकतें हैं । नहीं बताने पर पेड़ काटने वाली धारहीन बड़ी कैंची से उनका दाँया स्तन रगड़ रगड़ कर काट दिया गया।
ऐसी दर्दनाक यातनाएं उन्हें दी गई । जब यातनाएं और अपमान सहन न कर सकी तो एक दिन मौका पाकर उन्होंने समुद्र में छलाँग लगा दी। वहाँ उसे जारवा जनजाति के लोगों ने बचा लिया । कुछ दिन उनके साथ रही। उन्हें अपनी भाषा में बताया कि मैं इंडिया की रहने वाली हूँ। उन्होंने एक नाव के द्वारा उन्हें भेजा लेकिन वे उसे गलती से इंडिया की जगह इंडोनेशिया ले गए। कुछ दिन वे वहाँ रही। वहाँ से फिर वह पुनः हिंदुस्तान लौटी । हैदराबाद में निजाम के यहाँ फूल भेजकर गुजारा करने लगी। हैदराबाद के लोग उन्हें पेदम्मा कह कर सम्बोधित करते थे। उन्होंने एक बार नेहरू जी से कहा कि सुभाष चंद जी जिंदा हैं। वे वेश बदल कर रह रहें हैं। तब नेहरू जी ने इसकी गोपनीय जाँच कराई और कहा कि वे जिंदा हैं , लेकिन हम 99 साल तक उन्हें अंग्रेजों को वापस लौटाने का समझौता कर चुके हैं। अब कुछ नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा तो मुझे उनसे मिलवा दीजिए । लेकिन नीरा को भी उनसे नहीं मिलने दिया गया। वे साधु के वेश में रहे। एक बार अयोध्या में एक साधु से पूँछा गया कि आपकी शक्ल सुभाष जी से मिलती हैं। आप वही तो नहीं हैं । तो उन्होंने यह कहकर बात को टाल दिया कि सुभाष का तो एक हाथ छोटा था। मेरे तो दोनों बराबर हैं। उसके बाद उनका कहीं पता नहीं चला। नीरा आर्य की नेताजी से मिलने की इच्छा अधूरी रह गई। नीरा जी का अंतिम समय हैदराबाद में गुजरा । यहाँ भी उनकी झोंपडी को तोड़ दिया गया। नीरा आर्य जब बीमार पड़ गई तो हैदराबाद के चार मीनार के पास उस्मानिया अस्पताल में भर्ती रही। वहाँ उनकी देखरेख तेजपाल जी धामा व उनकी पत्नी मधु धामा ने ही की थी। तभी उन्होंने उनका कटा हुआ स्तन भी देखा था। मधु धामा एक मुस्लिम महिला हैं। जिनका वास्तविक नाम बेगम फरहाना ताज है। वे एक उर्दू की अच्छी लेखिका हैं। अब वे मधु आर्य के नाम से हिन्दी में लेखन करती हैं। उन्होंने नीरा आर्य पर एक उपन्यास भी लिखा है। फरहाना ताज को मधु धामा नया नाम नीरा आर्य जी ने ही दिया था। नीरा जी उन्हें अपने जीवन की घटनाओं के बारे में बताया करती थी। मरते समय नेताजी के कुछ पत्र और महत्वपूर्ण दस्तावेज , डायरी तेजपाल जी को सौंप दी। तेजपाल जी धामा ने अपना स्वर्णपदक बेचकर नीरा जी का इलाज कराया । 26 जुलाई ,1998 को हैदराबाद के उस्मानिया अस्पताल में उनका 96 वर्ष की उम्र में एक निराश्रित वृद्धा के रूप में निधन हो गया। धामा जी ने ईलाज के पैसे तो चुका दिए लेकिन अब उनके पास अंतिम संस्कार के लिए रुपये नहीं थे। तो उनकी धर्म पत्नी मधु धामा ने अपनी शादी की अँगूठी बेचकर कफ़न काँठी का इंतजाम कर अन्तिम संस्कार किया। उन्होंने 70 लाख रुपए की लागत से उनकी जन्मभूमि खेकड़ा में एक भव्य स्मारक का निर्माण करवाया है। जिसकी मूर्ति अलवर के गोविंदगढ़ में गढ़ी गई है। यहीं पर एक पुस्कालय का निर्माण भी हुआ है। यहाँ नीरा आर्य जी के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज मौजूद हैं। उनके सुभाष चंद बोस को भेजे गए पत्र भी यहाँ हैं। यहाँ बागपत जिले के स्वतंत्रता सेनानियों के लगभग 300 छायाचित्र मौजूद हैं। जिस कार्य को करने में सरकारें कई बार असफल रही उसे धामा दम्पत्ति ने अपने त्याग और संघर्ष से पूर्णता प्रदान की है।
नीरा आर्य जी पर बहुत से लोक गायकों ने गीत बना कर उनके संघर्षमय जीवन को यादों में संजोया है। बागपत में जन्में कवि आदरणीय बलवीर जी करुण जो अब अलवर में रहते हैं ने ” बलिदानी नीरा ” नाम से एक महाकाव्य भी लिखा है । उन के जीवन पर आधारित कई फिल्मों का कार्य प्रगति पर है। सरकार ने उन पर एक राष्ट्रीय पुस्कार देने की घोषणा भी की है। प्रथम नीरा आर्य पुरस्कार छत्तीसगढ़ के अभिनेता अखिलेश पांडे को दिया गया है। नीरा जी आर्य को गुमनामी से निकालकर प्रकाश में लाने का श्रेय तेजपाल जी धामा व उनकी पत्नी मधु धामा को जाता है। वे बड़े उदार व्यक्तित्व के धनी हैं । मैंने उन्हें प्रत्यक्ष देखा है। उन्हीं की जुबानी को मैंने इस लेख में लिखने का प्रयास किया है। नीरा आर्य जी का नाम अब बड़े गर्व से हमेशा याद किया जाता रहेगा। अंत में नीरा आर्य जी के महान व्यक्तित्व को मेरा कोटि -कोटि प्रणाम।

राम कुमार प्रजापति
अलवर, राजस्थान
9079266054

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